रविदास जी का जीवन परिचय
संत
शिरोमणि श्री गुरु रविदास जी महाराज! जिन्होंने अपनी वाणियो से पुरे संचार में
सच्चाई और मानवता की जोत जलाई आज हम उसी परमात्मा के बारे अपने ज्ञान को उज्जवल
करेंगे जिन्हे हम गुरु रविदास कहते है !
प्रस्तावना
रविदास
जी का जन्म
परिवार
और बचपन का वर्णन
रविदास
जी के संदर्भ में विविध विचारों का उल्लेख
जीवन की घटनाएँ
रविदास
जी का वैवाहिक जीवन
धर्म
से जुड़ने की घटना
रविदास
जी के द्वारा बनाए गए लेख
संघर्ष
और समाज सेवा के क्षेत्र में योगदान
निष्कर्ष
रविदास
जी के जीवन और कार्यों का महत्व
उनका
संदेश और उनकी अद्भुत प्रेरणा
उनका
समाज में स्थान और महत्व
उनकी
याद को समर्पित आध्यात्मिक और सामाजिक संघर्ष
प्रस्तावना
रविदास
जी एक महान संत थे जिन्होंने अपने जीवन के दौरान अनेकों सामाजिक व धार्मिक सुधारों
का कार्य किया। उनका जन्म 15वीं
शताब्दी के उत्तर प्रदेश के कासगंज में हुआ था। उनके पिता रोही नाम के एक चमार थे।
रविदास जी बचपन से ही बहुत धर्मिक थे और उन्होंने अपने जीवन के दौरान कई धर्म
ग्रंथों को अध्ययन किया था।
रविदास
जी एक महान संत, कवि और समाज सेवक थे
जिनका जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में सन् 1377 में हुआ था। वे एक चमार वर्ग के थे और उनके परिवार का जीवन
गरीबी और संकट से भरा था।
बचपन
से ही रविदास जी को धर्म और आध्यात्मिक विषयों में रुचि थी। वे संत मीरा बाई, संत कबीर, संत
रामानंद और संत नामदेव जैसे अन्य संतों की भावनाओं के प्रभाव में आते थे।
एक
दिन,
रविदास जी को दर्शन मिले जब उन्होंने एक गुरु के शिष्यों के
समूह को धर्म के उच्च मानकों का उल्लंघन करते देखा। यह घटना उन्हें अपने आप को
धर्म के उच्च मानकों से जोड़ने की प्रेरणा दी।
रविदास
जी अपनी जीवनगाथा को अपने लेखों के माध्यम से व्यक्त करते थे। उन्होंने अपने लेखों
में समाज के विभिन्न वर्गों के बीच धर्म के महत्व को बताया और लोगों को धर्म के
उच्च मानकों को अपनाने के लिए प्रेरित किया।
रविदास
जी ने अपने जीवन के दौरान अपने समाज को संघर्ष के लिए प्रेरित किया और उन्होंने
अपने उपदेशों के माध्यम से समाज में समानता का संदेश फैलाया। उन्होंने अपने
कविताओं के माध्यम से जाति व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाई थी।
रविदास
जी ने अपने जीवन के दौरान कई कार्य किए। उन्होंने चमार समुदाय में शिक्षा के लिए
अपनी मेहनत की। उन्होंने अपने समाज को स्वच्छता के लिए प्रेरित किया था और
उन्होंने अपने समुदाय के लोगों के लिए अस्पताल खोला था। रविदास जी के उपदेशों के
आधार पर बुद्धि और ज्ञान की महत्वपूर्ण बात करते हुए उन्होंने शिक्षा के महत्व को
बताया और अपने समाज के लोगों को शिक्षा के लिए प्रेरित किया। उन्होंने अपने
उपदेशों के माध्यम से समाज को एक समान और समझदार समाज बनाने का संदेश दिया।
रविदास
जी के उपदेश धार्मिक होने के साथ-साथ सामाजिक भी थे। उन्होंने अपने समाज के लोगों
को जागरूक करने के लिए अपनी कविताओं का उपयोग किया। उन्होंने अपनी कविताओं में
जाति व्यवस्था, बलात्कार, भ्रष्टाचार और बेटियों के सम्मान के बारे में बताया।
उन्होंने लोगों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने का संदेश दिया और समाज
में समानता का संदेश फैलाया।
रविदास
जी का जीवन एक अद्भुत उदाहरण है जो हमें समाज की समस्याओं के साथ-साथ धार्मिक जीवन
के महत्व को भी समझाता है। उनके जीवन और उपदेश हमें एक समान और समझदार समाज की
स्थापना के लिए प्रेरित करते हैं।
रविदास जी का जन्म
रविदाजी
को पंजाब में रविदास कहा। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान में उन्हें रैदास के नाम से ही जाना
जाता है। गुजरात और महाराष्ट्र के लोग 'रोहिदास' और
बंगाल के लोग उन्हें ‘रुइदास’ कहते हैं। कई पुरानी पांडुलिपियों में उन्हें
रायादास,
रेदास, रेमदास
और रौदास के नाम से भी जाना गया है। कहते हैं कि माघ मास की पूर्णिमा को जब रविदास
जी ने जन्म लिया वह रविवार का दिन था जिसके कारण इनका नाम रविदास रखा गया। उनका
जन्म माघ माह की पूर्णिमा को हुआ था। इस वर्ष 24 फरवरी 2024, दिन शनिवार को उनकी जयंती मनाई जाएगी।
संत
शिरोमणि कवि रविदास का जन्म माघ पूर्णिमा को 1376 ईस्वी को उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर गांव
में हुआ था। उनकी माता का नाम कर्मा देवी (कलसा) तथा पिता का नाम संतोख दास
(रग्घु) था। उनके दादा का नाम श्री कालूराम जी, दादी का नाम श्रीमती लखपती जी, पत्नी का नाम श्रीमती लोनाजी और पुत्र का नाम श्रीविजय दास
जी है। रविदासजी चर्मकार कुल से होने के कारण वे जूते बनाते थे। ऐसा करने में
उन्हें बहुत खुशी मिलती थी और वे पूरी लगन तथा परिश्रम से अपना कार्य करते थे।
उनका
जन्म ऐसे समय में हुआ था जब उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में मुगलों का शासन था
चारों ओर अत्याचार, गरीबी, भ्रष्टाचार व अशिक्षा का बोलबाला था। उस समय मुस्लिम शासकों
द्वारा प्रयास किया जाता था कि अधिकांश हिन्दुओं को मुस्लिम बनाया जाए। संत रविदास
की ख्याति लगातार बढ़ रही थी जिसके चलते उनके लाखों भक्त थे जिनमें हर जाति के लोग
शामिल थे। यह सब देखकर एक परिद्ध मुस्लिम 'सदना पीर' उनको
मुसलमान बनाने आया था। उसका सोचना था कि यदि रविदास मुसलमान बन जाते हैं तो उनके
लाखों भक्त भी मुस्लिम हो जाएंगे। ऐसा सोचकर उनपर हर प्रकार से दबाव बनाया गया था
लेकिन संत रविदास तो संत थे उन्हें किसी हिन्दू या मुस्लिम से नहीं मानवता से मतलब
था।
परिवार
और बचपन का वर्णन
गुरु
रविदास जी का जन्म 1398
ईसा पूर्व में उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के निकट बन्दागाव गांव में एक चमार
परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम संतोषदास था और माँ का नाम कुलदेवी था। उनके
परिवार में परंपरागत रूप से चमार वर्ग में से लोग थे जो जाति व्यवस्था के अंतर्गत
निम्न वर्ग में आते थे।
गुरु
रविदास जी का बचपन बड़ा ही संघर्षपूर्ण था। वे बचपन से ही गरीबी और असमानता का
अनुभव करते रहे थे। उनके घर की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर थी और उन्हें दुष्कर श्रम
के लिए मजबूर होना पड़ता था। अपने बचपन में वे गोबर और कचरे इकट्ठा करने में लगे
रहते थे।
गुरु
रविदास जी के परिवार का धर्म श्रीमद् भागवत था। उन्होंने बचपन से ही इस धर्म के
उद्धार के लिए जीवन का समर्पण किया था। उनकी माँ कुलदेवी धर्म का बहुत अनुयायी थीं
और उन्हें घर में धर्मिक शिक्षा देती थीं। इसके अलावा, गुरु रविदास जी ने अपनी
माँ
से अनेक धार्मिक बातें सीखीं जो बाद में उनके जीवन में बड़ा महत्व रखीं। गुरु
रविदास जी के जीवन का बड़ा हिस्सा भगवान राम की भक्ति में गुजरा। उनके घर पर
रामायण की पाठशाला चलती थी जहाँ वे भगवान राम की कथाएँ सुनते थे। इससे वे राम के
भक्त बन गए थे और उनकी श्रद्धा भगवान राम की ओर बढ़ती गई।
गुरु
रविदास जी के बचपन के समय उन्हें अपनी जाति के लोगों के साथ काम करने के कारण अनेक
समस्याएं भी उठानी पड़ीं। वे अपने साथियों को असमानता के खिलाफ लड़ने के लिए
प्रेरित करते थे।
गुरु
रविदास जी के बचपन का यह अनुभव उन्हें बाद में आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक समस्याओं के समाधान के लिए उनके विचारों
और कार्यकलापों को प्रेरित करने में मदद करता रहा। वे समाज में समानता, समझौता और प्रेम के संदेश को सफलतापूर्वक फैलाने के लिए
अपना जीवन समर्पित कर दिया।
रविदास
जी के संदर्भ में विविध विचारों का उल्लेख
गुरु
रविदास जी के विचार धर्म, समाज और
मानवता से जुड़े हुए थे। उन्होंने समाज में असमानता, भेदभाव, उत्पीड़न, उच्छृंखलता और अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। उनके विचारों
में धर्म और समाज के संबंधों का विस्तारपूर्वक उल्लेख होता है।
गुरु
रविदास जी के विचारों के मुख्य संदर्भों में श्रद्धा, सेवा, समानता, संयम, आदर्शों
का पालन,
प्रेम, एकता
और समझौता शामिल होते हैं। वे सभी लोगों के साथ एक जैसे बराबर होने की मांग करते
थे। उनके अनुयायी लोगों का कहना है कि गुरु रविदास जी ने धर्म के महत्व को सभी
लोगों तक पहुंचाने के लिए कई प्रचार यात्राएं भी की थीं।
गुरु
रविदास जी के विचारों का एक अन्य महत्वपूर्ण संदर्भ है उनका सामाजिक संदेश। वे
अपने समय के विभिन्न समाजिक विषयों पर विचार करते थे जैसे कि जाति भेदभाव, समानता, स्वतंत्रता
और सामाजिक न्याय। वे सभी मनुष्यों को समान अधिकारों का हकदार मानते थे और इसके
लिए उन्होंने समाज में सुधार के लिए लड़ाई लड़ी थी। उन्होंने जाति विशेषज्ञों और
ब्राह्मणों के साथ जो भेदभाव करते थे, उनसे विरोध किया था। वे सभी लोगों के लिए एक ही ईश्वर के
द्वारा बनाए गए थे और उनकी सेवा करना धर्म का एक आदर्श माना जाता था।
गुरु
रविदास जी ने भी जाति प्रथा के खिलाफ अपना आवाज उठाया था। उन्होंने बताया था कि
जाति एक अशुद्ध वस्तु नहीं है और सभी मनुष्य एक ही ईश्वर के समान होते हैं। इस तरह
से वे समाज में एकता और समानता को प्रचार करते थे।
गुरु
रविदास जी ने अपने विचारों के माध्यम से समाज को अधिक जागरूक बनाने का काम किया
था। उनका संदेश था कि हमें आपसी बैर और भेदभाव को छोड़कर समाज की सेवा करनी चाहिए।
उन्होंने यह भी बताया था कि दूसरों की मदद करने से हमें आनंद मिलता है और ईश्वर का
आशीर्वाद प्राप्त होता है।
जीवन
की घटनाएँ
गुरु
रविदास जी के जीवन में कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं थीं। उन्होंने अपने जीवन के दौरान
अनेक धर्मिक और सामाजिक कार्यों को संपादित किया था। गुरु रविदास जी को संत
रामानंद के उपदेशों से परिचित कराया गया था और उन्होंने उनके उपदेशों का अनुसरण
करते हुए अपने धर्मीक उद्देश्यों को प्राप्त किया। गुरु रविदास जी ने धर्म के
प्रति उनकी विशेष भक्ति का उल्लेख किया और उन्हें संत रामानंद की जाति उपेक्षा के
खिलाफ उनकी दृष्टि को समझाने का काम किया।
रविदास
जी का वैवाहिक जीवन
ईश्वर
के प्रति उनकी आस्था को देखकर रविदास के माता पिता खूब चिंतित रहने लगे। इसलिए
उन्होंने बहुत छोटी सी उम्र में ही रविदास का विवाह करने का सोच लिया ताकि विवाह
के बाद उन पर जिम्मेदारियां बढ़ जाये और वो अपने पिता के काम को आगे बढ़ सके।
संत
रैदास की पत्नी का नाम लोणा या लोना देवी था। लोना देवी भी धार्मिक विचारों वाली
महिला थी। रविदास और लोना देवी का एक पुत्र था, जिनका नाम विजय दास था।
शादी
के बाद भी उनका मन संसार में नहीं लग रहा था। इसलिये रविदास को उनके पिताजी ने घर
से अपनी पत्नी के साथ निकाल दिया। इस घटना के बाद रविदास अपने ही घर के पीछे झोपड़ी
बनाकर रहने लगे और सिलाई के साथ साथ प्रभु भक्ति भी करने लगे। उनकी पत्नी सरल
स्वभाव की थी, जिन्होंने हर कदम पर
अपनी पति का साथ दिया।
धर्म से जुड़ने की घटना
गुरु रविदास जी का धर्म से जुड़ने का सफर एक
बेहद महत्वपूर्ण और रोचक घटना है। उनका धर्म से जुड़ना एक दर्दनाक घटना के बाद हुआ
था। गुरु रविदास जी के जन्म के समय भारत में वैदिक धर्म प्रचलित था। उनके परिवार
भी वैदिक धर्म के अनुयायी थे। रविदास जी ने अपने जीवन के प्रारंभ में कुछ वैदिक
ग्रंथों को पढ़ा था, लेकिन
उन्हें इसमें कोई आस्था नहीं थी। उन्हें अपने आसपास के संगीत और भजनों की ताकत की
खोज थी।
एक
दिन रविदास जी को एक गुरु मिले जिन्होंने उन्हें संत माना और उन्हें संत मत का
ज्ञान दिया। इसके बाद से रविदास जी ने अपना जीवन संतों के उपदेशों और धर्म के
मार्ग पर चलने के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगों
को धर्म और संतों के महत्व के बारे में समझाया था।
इस
तरह,
गुरु रविदास जी ने संतों के मार्ग पर चलने का निर्णय लिया
और उन्होंने संत मत के सिद्धांतों के माध्यम
से लोगों को उन्हें समझाना और अपने जीवन को संतों के उपदेशों के अनुसार
जीने की सीख देना था। गुरु रविदास जी की उपलब्धियों में उनकी रचनाओं का एक बड़ा
संग्रह है, जिनमें उन्होंने
संतों के महत्व के बारे में बताया है।
गुरु
रविदास जी ने अपने जीवन के बाद भी अपने उपदेशों और रचनाओं के माध्यम से अनेक लोगों
को प्रेरित किया। उनकी रचनाओं का संग्रह आज भी उनकी स्मृति को सजीव रखता है।
गुरु
रविदास जी का संदेश संतता, त्याग, दया और विवेकपूर्ण जीवन जीने के लिए था। उन्होंने दरिद्रता
और असामाजिकता के खिलाफ लड़ाई लड़ी और समाज को एकता और समानता की ओर ले जाने का
संदेश दिया। उन्होंने अपने जीवन के माध्यम से सभी को यह संदेश दिया कि हम सभी
भगवान के बच्चे हैं और हमारी संतता, धर्म और जाति का कोई महत्व नहीं है। उन्होंने समाज में
असामाजिक तथा दलितों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी।
रविदास जी के द्वारा बनाए गए लेख
गुरु
रविदास जी ने अपने जीवन के दौरान कई लेख और रचनाएं बनाईं। उनकी रचनाओं का एक बड़ा
संग्रह है गुरु ग्रंथ साहिब जी के भाग में जो गुरु रविदास जी के बनाए गए लेखों का
संग्रह है।
इस
संग्रह में गुरु रविदास जी ने संतों के महत्व के बारे में बताया है। उन्होंने
भगवान के नाम का जप करने, सच्चे
गुरु की प्राप्ति करने और उसके उपदेशों का अनुसरण करने के महत्व को बताया है।
उन्होंने लोगों को यह समझाया है कि धर्म एक रास्ता है जो हमें भगवान की तलाश में
सहायता करता है।
उनके
लेखों में समाज में असामाजिक तथा दलितों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ने का महत्व
भी बताया गया है। उन्होंने समाज में एकता और समानता की बात की और उन्होंने सभी को
यह समझाया कि सभी भगवान के बच्चे हैं और हम सभी एक समान हैं।
गुरु
रविदास जी के लेखों में संतता, त्याग, दया और विवेकपूर्ण जीवन जीने के लिए था। उन्होंने लोगों को
यह समजाया कि धन, सम्मान
और शक्ति से अधिक मूल्यवान चीजें होती हैं जैसे शांति, समझदारी और प्रेम। उन्होंने भक्ति और सेवा के महत्व को भी
बताया। उन्होंने अपने लेखों में भगवान के नाम का जप करने के महत्व को बताया और यह
भी समझाया कि भगवान के नाम में ही समस्त शक्ति होती है।
उन्होंने
लोगों को यह भी समझाया कि धर्म और संतों के बिना कोई भी जीवन पूर्ण नहीं हो सकता।
गुरु रविदास जी ने अपने लेखों में अन्य धर्मों के सम्बन्ध में भी विचारों का
विस्तार किया। उन्होंने सभी धर्मों को समान ढंग से समझने और सम्मान करने की बात
कही। उन्होंने समझाया कि भगवान एक ही होते हैं और वे सभी धर्मों में समानता के साथ
विद्यमान होते हैं।
संघर्ष
और समाज सेवा के क्षेत्र में योगदान
गुरु
रविदास जी ने अपने जीवन के दौरान संघर्ष करने के कई क्षेत्रों में अपना योगदान
दिया। वे उन लोगों के लिए लड़े जो अपने अधिकारों से वंचित थे और जो समाज में
अस्थिर थे। उन्होंने आम जनता के हित में काम किया और समाज में समानता के लिए लड़ा।
उन्होंने
समाज को जागरूक करने के लिए भारतीय समाज को दलित-बहुजन वर्गों के अधिकारों के बारे
में जागरूक किया और उनके लिए लड़ा। उन्होंने जातिवाद के खिलाफ लड़ा और समाज को
जोड़ने के लिए भारत के अनेक दलित समाजों के बीच एकता का संदेश फैलाया।
गुरु
रविदास जी ने समाज सेवा के क्षेत्र में भी बहुत कुछ किया। उन्होंने विद्वता के
क्षेत्र में भी अपना योगदान दिया। उन्होंने संगीत के क्षेत्र में भी अपनी शिक्षा
दी और अनेक गायकों को प्रेरणा दी।
उन्होंने
विवेकानंद, अंबेडकर और गाँधी
जैसे महापुरुषों को भी प्रभावित किया। उन्होंने अपनी रचनाओं में संतों, धर्म और समाज के मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त किए और समाज
को जागरूक करने का काम किया।
गुरु
रविदास जी ने अपने जीवन के दौरान दलितों के अधिकारों के लिए लड़ा। वे समाज में
समानता के लिए लड़े और दलितों को उनके अधिकारों से वंचित नहीं रखने देने के लिए कई
कार्यशालाओं और आंदोलनों को आगे बढ़ाया।
गुरु
रविदास जी ने समाज को एकता का संदेश दिया और जातिवाद के खिलाफ लड़ा। उन्होंने सभी
लोगों को समान अधिकारों का अधिकार दिया और समाज में समानता का विचार फैलाया।
गुरु
रविदास जी ने भारत की धार्मिक विरासत को बचाने के लिए भी काम किया। उन्होंने संत
ज्ञानेश्वर के जैसे पूर्वजों के विचारों को बचाया और संस्कृत भाषा में अपनी रचनाओं
को लिखा जो आज भी अनुयायियों द्वारा पढ़े जाते हैं।
रविदास
जी के जीवन और कार्यों का महत्व
रविदास
जी एक महान संत थे जिनका जन्म 15वीं
शताब्दी में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन के दौरान बहुत से महत्वपूर्ण कार्य किए और
संत मत को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
रविदास
जी ने अपनी जीवन के दौरान अपनी शांत, विचारशील और दयालु प्रकृति से लोगों को प्रभावित किया।
उन्होंने भगवान के प्रति अपनी विश्वास को स्पष्ट किया और उन्होंने भगवान की भक्ति
के माध्यम से अपने आप को सुधारा। उन्होंने धर्म के लिए काफी कुछ किया और संत मत को
आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई।
रविदास
जी ने अपने काव्यों के माध्यम से भगवान की महिमा का गान किया। उनकी कविताएं भगवान
की कृपा और अनुग्रह के बारे में होती थीं। उन्होंने अपने भक्तों को समझाया कि
भगवान की कृपा से हम दुख से मुक्त हो सकते हैं।
रविदास
जी ने भारतीय समाज में विचारों के समझौते को उजागर किया। उन्होंने आर्य-द्रविड़
विवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी और उन्होंने आर्य-द्रविड़ विवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी और
समाज को एकता की ओर आगे बढ़ाया। उन्होंने जाति-व्यवस्था के खिलाफ अपने भक्तों को
उत्तम शिक्षा और अवसरों का उपयोग करने का संदेश दिया।
रविदास
जी ने अपने जीवन के दौरान समाज के असहिष्णुता और अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
उन्होंने अपने भक्तों को शांति और समझौते के साथ जीने के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने अपने जीवन के दौरान स्वयं के उत्तम उदाहरण के माध्यम से समाज को उत्तम
संदेश दिए।
रविदास
जी के कार्यों का महत्व बहुत अधिक है। उन्होंने संत मत को आगे बढ़ाया और भारतीय
समाज के विकास में अहम भूमिका निभाई। उनकी वाणी और काव्य आज भी लोगों को प्रभावित
करते हैं और उनकी उपदेशों को आज भी माना जाता है। उनके जीवन के महत्वपूर्ण कार्यों
के कारण उन्हें भारतीय समाज में महान संत के रूप में याद किया जाता है।
उनका
संदेश और उनकी अद्भुत प्रेरणा
रविदास
जी का संदेश अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने समाज में जातिवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी
और अपने भक्तों को शिक्षा और अवसरों का उपयोग करने का संदेश दिया। उन्होंने भगवान
के सामने सबको एक समान माना और सभी में एकता का भाव फैलाया। उनका संदेश हमें यह
बताता है कि हम सभी एक ही परमात्मा के पुत्र हैं और हमारे बीच कोई भेद नहीं होना
चाहिए।
उनकी
अद्भुत प्रेरणा लोगों को एकता के साथ जीने के लिए प्रेरित करती है। उन्होंने जीवन
के हर क्षेत्र में उत्तमता का परिचय दिया है। उनके द्वारा दिए गए संदेशों को आज भी
लोगों द्वारा माना जाता है और उनके उपदेशों का पालन किया जाता है। उन्होंने बताया
कि अगर हम अपने जीवन में उत्तमता की ओर बढ़ना चाहते हैं, तो हमें अन्य लोगों के लिए सहायता करना चाहिए और उनकी मदद
करनी चाहिए।
उनकी
प्रेरणा आज भी हमें एकता, समझौता
और प्रेम का संदेश देती है। उनके द्वारा दिए गए संदेश हमें सदैव अमर रहेंगे और
हमें अपने जीवन में एक नया आयाम देते रहेंगे। उनकी प्रेरणा और संदेश हमें अपने
जीवन के हर क्षेत्र में उत्तमता की ओर ले जाते हैं और हमें एक समझौते और समानता के
साथ एकता बनाने के लिए प्रेरित करते हैं।
अतः
रविदास जी के जीवन और कार्यों का महत्व अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनका संदेश हमें
एकता और समानता के साथ जीने के लिए प्रेरित करता है। उनकी अद्भुत प्रेरणा हमें
उत्तमता की ओर ले जाती है और हमें दूसरों की मदद करने और अन्य लोगों के साथ एकता
बनाने के लिए प्रेरित करती है।
उनका समाज में स्थान और महत्व
रविदास
जी के जीवन और कार्य समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने समाज में
जाति-व्यवस्था के विरोधी आंदोलन के लिए प्रेरित किया। उन्होंने समाज में समानता और
एकता के संदेश को फैलाया और समाज के विभिन्न वर्गों को एक साथ लाने का प्रयास
किया।
रविदास जी ने अपने काव्य, दोहे और अवधि के द्वारा उपदेश दिया और समाज को उत्तमता के
साथ जीने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने समाज के अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए
लड़ाई लड़ी और उनकी समस्याओं को सुलझाने के लिए काम किया। रविदास जी का समाज में
एक महान और महत्वपूर्ण स्थान है। उनकी दृष्टि में सभी लोग समान होते हैं और सभी के
अधिकार होते हैं। उनके समाज में समानता और एकता की भावना से लोगों में उत्साह और
संघर्ष की भावना पैदा हुई।
रविदास जी ने अपनी शांत और
प्रेमपूर्ण वाणी के जरिए जीवन के सभी मुद्दों का समाधान प्रस्तुत किया। उन्होंने
धर्म और जीवन के बीच संघर्ष करने वालों को समझाया कि जीवन का उद्देश्य धर्मानुसार
जीना नहीं होता, बल्कि इस जगत में
जीवन का उद्देश्य सभी का कल्याण होता है।
रविदास जी के शब्दों में
भावनाएं थीं जो समाज को बदलने की शक्ति देती थीं। उन्होंने उत्पीड़ितों के लिए
लड़ाई लड़ी और उन्हें सशक्त बनाने का प्रयास किया। उनका संदेश था कि समाज में
समानता होनी चाहिए और सभी को एक साथ रहना चाहिए। उन्होंने आध्यात्मिकता को जीवन का
महत्वपूर्ण अंग माना और सभी को धर्म के लिए समान अवसर प्रदान करने की मांग की।
उनकी याद को समर्पित आध्यात्मिक और सामाजिक
संघर्ष
रविदास
जी की याद को समर्पित अनेक आध्यात्मिक और सामाजिक संघर्ष आज भी चलते हैं। वे समाज
को समानता, सम्मान, एकता और प्रेम के संदेश देते हुए अपने जीवन का समर्थन करते
रहे। उनके संदेशों ने अनेक लोगों को आध्यात्मिकता की ओर प्रेरित किया और उन्हें
धर्म और मानवता के मूल सिद्धांतों को समझने में मदद की।
आज
भी रविदास जी के भक्त उनकी याद में आध्यात्मिक अध्ययन और ध्यान करते हुए अपने जीवन
को स्वयं सुधारने का प्रयास करते हैं। सामाजिक रूप से भी, रविदास जी के अनुयायी उनकी याद में निरंतर आंदोलन और
जागरूकता कार्यक्रमों में शामिल होते हैं। उनके संदेश ने समाज में विकास के लिए एक
नई दिशा दी और उनकी याद आज भी समाज को एकता, समानता और प्रेम की भावना से भर देती है।
रविदास
जी की याद में कई धार्मिक और सामाजिक संस्थाएं भी हैं जो उनके संदेश को आगे बढ़ाती
हैं। उनमें से एक है रविदास मंदिर जो कि रविदास जी की याद में बनाई गई है। ये
मंदिर भक्तों के लिए आध्यात्मिक और सामाजिक कार्यक्रमों का केंद्र होते हैं जहां
लोग रविदास जी की याद में मिलकर उन्हें समर्पित अपने जीवन के विभिन्न कार्यक्रमों
में शामिल होते हैं।
इसके
अलावा,
रविदास जी की याद में एक अन्य महत्वपूर्ण संस्था है जो कि
रविदास जी के नाम पर बनाई गई है - "भगत रविदास अम्बेदकर जनमुक्ति
मोर्चा"। यह संस्था बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर जी द्वारा स्थापित की गई है
जो रविदास जी के संदेशों के महत्व को समझते थे। इस संस्था के लोग समाज को समानता, सम्मान और जाति-विमोचन की दिशा में आगे बढ़ाते हुए रविदास
जी के संदेशों को आगे ले जाते हैं।
पारख
के अंग की वाणी नं. 703-709:-
तुम
पण्डित किस भांतिके, बोलत है
रैदास। गरीबदास हरि हेतसैं, कीन्हा
यज्ञ उपास।।703।।
यज्ञ
दई रैदासकूं, षटदर्शन बैठाय।
गरीबदास बिंजन बहुत, नाना
भांति कराय।।704।।
चमरा
पंडित जीमहीं, एक पत्तल कै मांहि।
गरीबदास दीखै नहीं, कूदि
कूदि पछतांहि।।705।।
रैदास
भये है सात सै, मूढ पंडित गलखोड़ि।
गरीबदास उस यज्ञ में, बौहरि
रही नहीं लोड़ि।।706।।
परे
जनेऊ सात सै, काटी गल की फांस।
गरीबदास जहां सोने का, दिखलाया
रैदास।।707।।
सूत
सवामण टूटिया, काशी नगर मंझार।
गरीबदास रैदासकै, कनक जनेऊ
सार।।708।।
पंडित
शिष्य भये सात सै, उस काशी
कै मांहि। गरीबदास चमार कै, भेष लगे
सब पाय।।709।।
सरलार्थ:–
संत रविदास जी का जन्म चमार समुदाय में काशी नगर में हुआ। ये परमेश्वर कबीर जी के
समकालीन हुए थे। परम भक्त रविदास जी अपना चर्मकार का कार्य किया करते थे। भक्ति भी
करते थे। परमेश्वर कबीर जी ने काशी के प्रसिद्ध आचार्य स्वामी रामानन्द जी को
यथार्थ भक्ति मार्ग समझाया था। अपना सतलोक स्थान दिखाकर वापिस छोड़ा था। उससे पहले
स्वामी रामानन्द जी केवल ब्राह्मण जाति के व्यक्तियों को ही शिष्य बनाते थे। उसके
पश्चात् स्वामी रामानंद जी ने अन्य जाति वालों को शिष्य बनाना प्रारम्भ किया था।
संत रविदास जी ने भी आचार्य रामानन्द जी से दीक्षा ले रखी थी। भक्ति जो परमेश्वर
कबीर जी ने स्वामी रामानन्द जी को प्रथम मंत्रा बताया था, उसी को दीक्षा में स्वामी जी देते थे। संत रविदास जी उसी
प्रथम मंत्रा का जाप किया करते थे। एक दिन संत रविदास को एक ब्राह्मण रास्ते में
मिला और बोला, भक्त जी! आप गंगा
स्नान के लिए चलोगे, मैं जा
रहा हूँ। संत रविदास जी ने कहा कि ‘मन चंगा तो कटोती में गंगा’, मैं नहीं जा रहा हूँ।
पंडित
जी बोले कि आप नास्तिक से हो गए लगते हो। आप उस कबीर जी के साथ क्या रहने लगे हो, धर्म-कर्म ही त्याग दिया है। कुछ दान करना हो तो मुझे दे
दो। मैं गंगा मईया को दे आऊँगा। रविदास जी ने जेब से एक कौड़ी निकालकर ब्राह्मण जी
को दी तथा कहा कि हे विप्र! गंगा जी से मेरी यह कौड़ी देना। एक बात सुन ले, यदि गंगा जी हाथ में कौड़ी ले तो देना अन्यथा वापिस ले आना।
यह कहना कि हे गंगा! यह कौड़ी काशी शहर से भक्त रविदास ने भेजी है, इसे ग्रहण करें। पंडित जी ने गंगा दरिया पर खड़ा होकर ये
शब्द कहे तो गंगा ने किनारे के पास हाथ निकालकर कौड़ी ली और दूसरे हाथ से पंडित जी
को एक स्वर्ण (Gold) का कंगन
दिया जो अति सुंदर व बहुमूल्य था। गंगा ने कहा कि ये कंगन परम भक्त रविदास जी को
देना। कहना कि आपने मुझ गंगा को कृतार्थ कर दिया अपने हाथ से प्रसाद देकर। मैं संत
को क्या भेंट दे सकती हूँ? यह तुच्छ
भेंट स्वीकार करना।
पंडित
जी उस कंगन को लेकर चल पड़ा। पंडित जी के मन में लालच हुआ कि यह कंगन राजा को
दूँगा। राजा इसके बदले में मुझे बहुत धन देगा। वह कंगन पंडित जी ने राजा को दिया
जो अद्भुत कंगन था। पंडित जी को बहुत-सा धन देकर विदा किया और उसका नाम, पता नोट किया। राजा ने वह कंगन रानी को दिया। रानी ने कंगन
देखा तो अच्छा लगा। ऐसा कंगन कभी देखा ही नहीं था। रानी ने कहा कि एक कंगन ऐसा ही
ओर चाहिए। जोड़ा होना चाहिए। राजा ने उसी पंडित को बुलाया और कहा कि जैसा कंगन पहले
लाया था,
वैसा ही एक और लाकर दे। जो धन कहेगा, वही दूँगा। यदि नहीं लाया तो सपरिवार मौत के घाट उतारा
जाएगा। उस धोखेबाज (420) के
सामने पहाड़ जैसी समस्या खड़ी हो गई। सब सुनारों (श्राफों) के पास फिरकर अंत में परम
भक्त रविदास जी के पास आया। अपनी गलती स्वीकार की। सर्व घटना गंगा को कौड़ी देना, बदले में कंगन लेना।
उस
कंगन को भक्त रविदास जी को न देकर मुसीबत मोल लेना। पंडित जी ने गिड़गिड़ाकर रविदास
जी से अपने परिवार के जीवन की भिक्षा माँगी। रविदास जी ने कहा कि पंडित जी! आप
क्षमा के योग्य नहीं हैं, परंतु
परिवार पर आपत्ति आई है। इसलिए आपकी सहायता करता हूँ। आप इस पानी कठोती (मिट्टी का
बड़ा टब जिसमें चमड़ा भिगोया जाता था) में हाथ डाल और गंगा से यह कह कि भक्त रविदास
जी की प्रार्थना है कि आप कठोती में आएँ और एक कंगन वैसा ही दें। ऐसा कहकर पंडित
जी ने जो रविदास के चमार होने के कारण पाँच फुट दूर से बातें करता था, अब उस चाम भिगोने वाले कुंड (टब) में हाथ देकर देखा तो हाथ
में चार कंगन वैसे ही आए। भक्त रविदास जी ने कहा कि पंडित जी! एक ले जाना, शेष गंगा जी को लौटा दे, नहीं तो भयंकर आपत्ति ओर आ जाएगी। ब्राह्मण ने तुरंत तीन
कंगन वापिस कुण्ड में डाल दिए और एक कंगन लेकर राजा को दिया। रानी ने पूछा कि यह
कंगन कहाँ से लाए हो, मुझे
बता। ब्राह्मण ने संत रविदास जी का पता बताया।
रानी
ने सोचा कि कोई स्वर्णकार (Goldsmith) होगा और ढ़ेर सारे कंगन लाऊँगी। रानी को एक असाध्य रोग था।
पित्तर का साया भी था। बहुत परेशान रहती थी। सब जगह उपचार करा लिया था। साधु-संतों
का आशीर्वाद भी ले चुकी थी। परंतु कोई राहत नहीं मिल रही थी। रानी उस पते पर गई।
साथ में नौकरानी तथा अंगरक्षक भी थे। रानी ने संत रविदास जी के दर्शन किए। दर्शन
करने से ही रानी के शरीर का कष्ट समाप्त हो गया। रानी को ऐसा अहसास हुआ जैसे सिर
से भारी भार उतर गया हो। रानी ने संत जी के तुरंत चरण छूए। रविदास जी ने कहा कि
मुझ निर्धन के पास मालकिन का कैसे आना हुआ? रानी ने कहा कि मैं तो सुनार की दुकान समझकर आई थी गुरूजी।
मेरा तो जीवन धन्य हो गया। मेरा जीवन नरक बना था रोग के कारण। आपके दर्शन से वह
स्वस्थ हो गया। मैंने इसके उपचार के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी थी। परंतु कोई लाभ नही
हो रहा था। संत रविदास जी ने कहा कि बहन जी! आपके पास भौतिक धन तो पर्याप्त है। यह
आपके पूर्व जन्म के पुण्यों का फल है। भविष्य में भी सुख प्राप्ति के लिए आपको
वर्तमान में पुण्य करने पड़ेंगे। आध्यात्म धन संग्रह करो। रानी ने कहा कि संत जी!
मैं बहुत दान-धर्म करती हूँ। महीने में पूर्णमासी को भण्डारा करती हूँ। आसपास के
ब्राह्मणों तथा संतों को भोजन कराती हूँ। संत रविदास जी ने कहा:-
बिन
गुरू भजन दान बिरथ हैं, ज्यूं
लूटा चोर। न मुक्ति न लाभ संसारी, कह
समझाऊँ तोर।।
कबीर, गुरू बिन माला फेरते, गुरू बिन देते दान। गुरू बिन दोनों निष्फल हैं, चाहे पूछो बेद पुरान।।
रानी
ने कहा कि हे संत जी! मैंने एक ब्राह्मण गुरू बनाया है। रविदास जी ने कहा कि नकली
गुरू से भी कुछ लाभ नहीं होने का। आप जी ने गुरू भी बना रखा था और कष्ट यथावत थे।
क्या लाभ ऐसे गुरू से? रानी ने
कहा कि आप सत्य कहते हैं। आप मुझे शिष्या बना लो। रविदास जी ने रानी को प्रथम
मंत्रा दिया। रानी ने कहा कि गुरूजी! अबकी पूर्णमासी को आपके नाम से भोजन-भण्डारा
(लंगर) करूंगी। आप जी मेरे घर पर आना। निश्चित तिथि को रविदास जी राजा के घर
पहुँचे। पूर्व में आमंत्रित सात सौ ब्राह्मण भी भोजन-भण्डारे में पहुँचे। भण्डारा
शुरू हुआ। रानी ने अपने गुरू रविदास जी को अच्छे आसन पर बैठा रखा था। उसके साथ सात
सौ ब्राह्मणों को भोजन के लिए पंक्ति में बैठने के लिए निवेदन किया। ब्राह्मण कई
पंक्तियों में बैठे थे। भोजन सामने रख दिया गया था। उसी समय ब्राह्मणों ने देखा कि
रविदास जी अछूत जाति वाले साथ में बैठे हैं। सब अपने-अपने स्थान पर खड़े हो गए और
कहने लगे कि हम भोजन नहीं करेंगे। यह अछूत रविदास जो बैठा है, इसे दूर करो। रानी ने कहा कि यह मेरे गुरू जी हैं, ये दूर नहीं होंगे। संत रविदास जी ने रानी से कहा कि बेटी!
आप मेरी बात मानो। मैं दूर बैठता हूँ। रविदास जी उठकर ब्राह्मणों ने जहाँ जूती
निकाल रखी थी, उनके पीछे बैठ गए।
पंडितजन भोजन करने बैठ गए। उसी समय रविदास जी के सात सौ रूप बने और प्रत्येक
ब्राह्मण के साथ थाली में खाना खाते दिखाई दिए। एक ब्राह्मण दूसरे को कहता है कि
आपके साथ एक शुद्र रविदास भोजन कर रहा है, छोड़ दे इस भोजन को। सामने वाला कहता है कि आपके साथ भी भोजन
खा रहा है। इस प्रकार प्रत्येक के साथ रविदास जी भोजन खाते दिखाई दिए। रविदास जी
दूर बैठे कहने लगे कि हे ब्राह्मणगण! मुझे क्यों बदनाम करते हो, देखो! मैं तो यहाँ बैठा हूँ। इस लीला को राजा, रानी, मंत्राी
सब उपस्थित गणमान्य व्यक्ति भी देख रहे थे। तब रविदास जी ने कहा कि ब्राह्मण कर्म
से होता है, जाति से नहीं। अपने
शरीर के अंदर (खाल के भीतर) स्वर्ण (Gold) का जनेऊ दिखाया। कहा कि मैं वास्तव में ब्राह्मण हूँ। मैं
जन्म से ब्राह्मण हूँ। कुछ देर सत्संग सुनाया। उस समय सात सौ ब्राह्मणों ने अपने
नकली जनेऊ (कच्चे धागे की डोर जो गले में तथा काॅख के नीचे से दूसरे कंधे पर बाँधी
होती है) तोड़कर संत रविदास जी के शिष्य हुए। सत्य साधना करके अपना कल्याण कराया।
सात सौ ब्राह्मणों के जनेऊओं के सूत का सवा मन (50 कि.ग्राम) भार तोला गया था।